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क्या अल्पसंख्यक समुदाय फिरसे मौका गवां दिए ?

आत्ममंथन
आत्ममंथन
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इन दिनों प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो अथवा सोशल मीडिया सब जगह यह आत्ममंथन करने में लगे है कि यदि मोदी लहर चल रह था, वाकये में इंदिरा गांधी के देहांत के उपरांत राजीव गांधी के प्रधानमंत्री के उम्मीदवारी के सन्दर्भ में लहर देखा गया था उनसे भी बढ़कर था तो वह वोटो में तब्दील क्यों नहि हुआ ? वास्तविक में मीडिया के द्वारा एक्सिट पोल से लहर व सुनामी क आभाष नहि किया जा सकता है पर ये भी संकेत दे रहे है कि एनडीए गंठबंधन को सरकार बनाने की मेजोरिटी मिल रही है जो आज के परिवेश में काफी है क्यूंकि पिछले दो दशक में किसी भी पार्टी को इतने सीट नहि मिलें जितने इस बार भाजपा को मिलता दिख रहा है।

दरअसल में मोदी लहर आजाद भारत में अभी तक के सबसे बड़ा सत्ता परिवर्त्तन का लहर है जिसमें सिर्फ बहुसंख्यक वोट एक मुस्त होकर किसी एक दल को मिला यदि अल्प् -संख्यक लोग भी भाजपा को समर्थन देते तो एक्सिट पोल तथापि एक्चुअल परिणाम १९८४ के चुनाव परिणाम के भाँति अव्वल ही होते है। इस चुनाव परिणाम से भाजपा और आरएसएस को पूर्णतः ज्ञात हो जाना चाहिए कि देश के अल्पसंख्यक क़िसी भी हाल में उनको वोट नहि दे सकते, यदि एक तरफ़ त्रासदी और तानाशाह देने वाली पार्टी हो जबकि दुसरे तरफ़ भाजपा हो तो ऐसे आफद के घड़ि में अल्पसंख्यक भाजपा को चित्त करने के लिये आफद और त्रासदी से प्रेरित पार्टी को ही वोट करेँगे। फिर भी बिहार, उत्तर प्रदेश और पस्चिम बंगाल के अल्पसंख्यक से उम्मींद सिर्फ दिल को तस्सल्ली देने के लिये ही किया जा सकता है।

हालाँकि गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के अल्पसंख्यक में भाजपा के प्रति सकारात्मक रवैया देखा जा सकता है जिस कारण उन प्रांतो में भाजपा क्लीन स्वीप कर सकती है। देश में अल्पसंख्यक क वोट लगभग २० -२२ प्रतिशत है जो यदि एक पार्टी के पक्ष में दिया जाता है तो उन पार्टी को हराना कतई आसान नहि है। चाहे क्षेत्रीय पार्टी हो अथवा राष्टीय पार्टी हो अल्प-संख्यक का वोट अगर उनके पाले में जाता है उन्हे जीत पक्की मानी जाती है। इसीलिए देश के जितनें भी क्षैत्रिय पार्टी वह खुदको धर्मनिरपेक्षता के सबसे बड़ा पुजारी के रुप में सैदेव अल्प संख्यक सामने पेश करते रहते है जबकि राष्ट्रीय शियाशी दल अनेकौ प्रकार के ताना -बाना बुनते रहते है ताकि अल्प संख्यक वोट किसी भी हाल में न खिसके। जबकि देश के अल्प संख्यक अपने एक मुस्त वोट सिर्फ़ भाजपा को हरानेवाली पार्टी को पड़ोसते आरहे है इसिलिये तो इस बार जाति और क्षैत्रिय स्वार्थ को छोड़कर पुरे देश एक सरकार का सपना संजोये हुए है जो उन्हे विकास और समृद्धी की ओर ले जाए ऐसे में अल्प संख्यक समुदाय से भी सकारात्मक योगदान का आपेक्षा करना वाजिव था।

आज के परिदृश्य में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक मौजूदा सरकारके खिलाफ जो आक्रोश था उसीका नतीजा है कि अल्पसंख्यक समुदाय के नकारात्मक झुकाव के वाबजूद भाजपा अपने पिछलें सभी रिकॉर्ड को ध्वस्त करके इस चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन करने जा रही है। एक तरफ परिवर्तन के महायज्ञ में सबने बड़े उत्साह के साथ अपनी-अपनी आहुति देने क काम किये है फिर भी कोइ समुदाय चुक गये तो वह हो अल्प-संखयक समुदाय का बड़े तबक़े जो देश के इस बदलाव के बीच अपने व्यक्तिगत खीश को तज्जुब दी इन्हीके चलते देश के समृद्ध और संप्रभुता सरकार की बात करने वाले लोगो को अनदेखी करके अपने बहुमूल्य वोट को उनको दें दिये जिनके कार्यशैली से तकरीबन समस्त देश हतोत्साहित थे। यद्दिप इस चुनाव में अल्पसंख्यक के लिये एक बेहतरीन मौका था जिनको न कि खुद हि गंवा दिये ब्लीक एक बार फिर ये साबित कर गये कि उनके लिये देश से पहले उनका निजी हित ही सर्वोपरि है जिसे किसी भी हाल में छोड़ा नहि जा सकता है।

बरहाल १६ मई को पुरे आवाम को बड़े वेसर्बी से इन्तज़ार है जिस रोज रुझान वास्तविकता से रूबरू होंगे। वस्तुतः चुनाव परिणाम आने के बाद ही सरकार के शक्ति का आँकलन करना मुमकिन होगा क्युँकी जितनें छोटी गठबंधन क स्वरुप होंगे उतने ही अपेक्षित और दीर्घायु सरकार का कल्पना की जा सकती है और भावी सरकार के लिये भी सम्भव होगे कि जनता के उम्मीद पर बखूबी उतरने का प्रयास करेंगे।

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