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लो आ गया केजरीवाल धरना एंड हल्लाबोल पार्टी …..

आत्ममंथन
आत्ममंथन
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” कल वानारस जाना ही होगा नहीं तो लोगो के बीच गलत मेसेज जायेगा क्यूंकि २३ मार्च का प्लान को पोस्टपोन्ड कर दिया गया अब २५ तारिक को किसी भी हालत में वानारस के लोगों के बीच अपनी मौहजूदगी दर्ज करनी होगी।” अपनी बात को बीच में ही रोककर दूसरी तरफ से आ रही आवाज को गौर से सुनने का प्रत्यन करते है।

“देखिये केजरीवाल जी, पुरे वानारस में अपनी दो हजार वॉलंटीयर इकठ्ठा नहीं हो पा रहे है।”

“अरे पुरे प्रदेश का वॉलंटीयर इकट्ठा कर लो।” खासतें हुए…।

फिर भी तीन हज़ार से ज्यादा नहीं होगा क्यूंकि उस दो हज़ार में भी तो कानपूर से लेकर अलाहबाद के वॉलंटीयर सामिल है।”

“ऐसा करो दिल्ली से वॉलंटीयर को साथ ले चलो, लेकिन प्रोग्राम को पक्का करो।”

कौशिश तो करता हूँ पर ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती है। वॉलंटीयर भी थक गए है अहमदाबाद से लेकर मुम्बई तक दौरा करके अभी हाल में ही लोटे है जबकि दिल्ली एनसीआर में तो रोज कोई न कोई प्रोग्राम रहता हैं ऐसे में वॉलंटीयर को थकना तो मुनासिब है?”

“जो भी हो, कम से कम चार हजार – पांच हजार वॉलंटीयर भी इकट्ठा होगें तो काम बन जायेगा क्यूंकि भीड़ -भाड़ वाले इलाके में इतने से भी काम चल जायेगा।”

“ठीक है, ऐसा करते सभी को अभी मेसेज भेज ही देते है।”अचानक सन्नाटा पड़ गया।

“चलो ठीक है, ओके ” कॉल डिसकनेक्ट करते ही रिंगटोन बजने लगते है ” हेलो हेलो, हँ , बोलिये। ”

“केजरीवाल जी ” एक आवाज सुनायी पड़ी।

“हं, जी।” कह कर दुसरी तरफ से आ रही आवाज को खासतें – खासतें सुनने लगता है।

“मैं वानारस से बोल रहा हूँ, देखिये यहाँ का हालात बिलकुल अनुकूल है और जबसे आपने भाजपा के द्वारा हिंशा फ़ैलाने का आशंका जताए है तबसे पुलिस कि जबर्दस्त सख्ती कर दी गयी है, और मीडिया में भी ये ख़बर हेड लाइन्स बनी हुई है इसलिए अब आप बेफिक्र होकर आइये।”

मुझे तो कोई डर नहीं है ये तो बस मीडिया की सुहानभूति के लिए अफवाह फैलायी थी ताकि मीडिया का कवरेज हो सके वेसे भी मीडिया कर्मी हमारे पार्टी से काफी नाराज दीखते है। अच्छा ये बताओ हवा का क्या रुख है ?”

“मोदी का लहर है इसे झुठलाया नहीं जा सकता फिर भी एक समीकरण बनने का आसार है यदि हम अल्पशंख्यक का वोट हासिल कर पाते है।”

“तो ऐसा करो पहले तो गंगा में डुबकी लगाएंगे फिर अल्पशंख्यक के इलाके में ही रोड शो करेंगे।”

“अल्पशंख्यक के इलाके में ही रोड शो का बात तो ठीक है पर गंगा में डुबकी लायेंगे इसका विपरीत मेसेज तो नहीं जायेंगे।”

“पहले मैं ऐसा ही सोचता था पर बच्चे का जिद्द है तो मैंने प्रोग्राम चेंज कर दिया। चलो रखते है क्यूंकि तैयारी भी करनी है क्यूंकि रात में ही गाड़ी पकड़ना है।”
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“अभीतक प्रोग्राम बिलकुल सटीक रहा, गंगा में स्नान भी कर लिए, बाबा विश्वनाथ का दर्शन भी हो गया, संकटमोचन का भी पूजा -अर्चना बड़े आराम से हो गया अब रोड शो के लिए चल दिए। पर वॉलंटीयर के शंख्या देखकर खुश नहीं थे पर कार्यकर्ता के तरफ से अस्वाशन दिया गया कि एक बार रोड शो शुरू हो जायेंगे तो लोग जुड़ते जायेंगे। वेसे भी केजरीवाल मोदी के खिलाफ चुनावी रणभूमि दो -दो हाथ करने के लिए आये है तो सिर्फ मीडिया का सुर्खिया बटोरने के लिए न कि मोदी के खिलाफ चुनाव जीतने, जो फिलहाल जारी है। जहांतक पलटनी मारने में तो महारथ है ही, हो सकता है कि मोहाल विपरीत लगा तो पलटीमार कर फिर से दिल्ली के तरफ अपने रुख को मोड़ लेंगे।

केजरीवाल साहेब राजनीती धरातल पर इसलिए प्रगट हुए थे कि राजनीती वातावरण में काफी प्रदूषित हो गए जिसे शुद्धिकरण की आवश्यकता है ताकि राजनीती वातावरण में सुचिता और संवेदना दिखे लेकिन वानारस रैली के बाद जो भी उनके समर्थक है ये जान ले कि ऐसा कोई भी इरादा लेकर केजरीवाल राजनीती धरातल पर प्रगट नहीं हुए है क्यूंकि जो वोट के खातिर दो समुदायो को बाँटने और वोट के लिए ध्रुवीकरण करने में लगे है उनसे सुचिता और संवेदना का अपेक्षा करना मुनासिब कतई नहीं होग, जिनका एक मात्र उद्देश्य है कि किसी तरह देश या प्रदेश की सरकार को अस्थिर करना और देश की राजनीती परिदृश्य को असमंजस में रखना, नहीं तो इस तरह का अलगवादी मोहाल बनाने कि क्या जरुरत है ?, एक तरफ छोटी सी दिल्ली जैसे राज्य में सरकार नहीं चला पाना और फिर अपने को देश चलाने में सक्षम कहना, यह एक अलगवादी या अराजक सोंच के सिवाय कुछ भी नहीं है।

चुनाव के बाद दिल्ली का जो भी हालात बनी है इसके लिए कौन जिम्मेवार ?, क्या दिल्ली भ्रष्टाचारमुक्त हो गया ?, दिल्ली वासी को मुफ्त पानी और बिजली कितने दिन के लिए नसीब हुए महज़ दो से तीन महीने के लिए, क्या ये काफी है?,

केजरीवाल और एसोसिएटस का काम अभी तक का जो रहा है सिर्फ और सिर्फ मीडिया का हेड लाइन्स में बने रहने के लिए रहा अथवा हवा हवाई रहा नतीजन दिल्ली में छै महीने के लिए सब कुछ थप हो गया अर्थात न ही पुराने काम को पूरा ही किया जा सकता और न ही नए काम का श्री गणेश होंगे और ये भी पूर्वनिर्धारण नहीं किया जा सकता है सबकुछ छै महीने में सामान्य हो जायेंगे क्यूंकि यदि दिल्ली के मध्यावधि चुनाव के बाद दिल्ली को मजबूत सरकार नहीं मिलती है तो इस तरह का हालात का फिर से सामना दिल्ली प्रदेश के लोगों को करना ही होगा।

दरशल में केजरीवाल का अहम् मुद्दा भ्रष्टाचार था पर इस चुनाव में भ्रष्टाचार का मुद्दा से मन उब गया या आभाष हो गया कि इन मुद्दा के बदोलत आगे का रास्ता परस्त नहीं करा जा सकता इसलिए अब ये मुद्द खास नहीं रहा आखिरकार आज चुनावी में उन्होंने सम्प्रदायिकता के ऊपर ध्यान केंद्रित कर रखा और अब उनका अहम् मुद्दा सम्प्रदायिकता हो गया और इस चुनाव का नैया इसी के सहारे पार लगाने के फ़िराक में है। हालाँकि केजरीवाल वोट के लिए कुछ भी कर सकता है इस बात का भनक उस समय ही लग गया था जब उन्होंने तोफिक रजा से बरैली में जाकर मिले और उनसे समर्थन के लिए आग्रह किये और दिल्ली चुनाव में मौखिक तौर से उनका समर्थन भी केजरीवाल को मिला। वही तोफिक रजा साहेब है जिनके ऊपर दंगा भडकाने का आरोप लग चुके है। केजरीवाल इस तरह के राजनीती करने के वाबजूद खुदको सबसे साफ-सुथरी राजनीतिज्ञ कहने से थकते नहीं। अफसरवादी मोहाल में मौकापरस्त लोगों से घिरे हुए महापुरुष केजरीवाल अपने निसाने पर उन्ही शख्शियत सुमार करते है जिनके अपने क्षेत्र में बहुत बड़ा कद है इसलिए अम्बानी, अदानी, मोदी, राहुल जैसे लोगों के इर्द- गिर्द ही घूमते रहते है ताकि मुफ्त का पब्लिसिटी मिलते रहे और मीडिया के माध्यम से सुर्खिया मिलते रहे जबकि उत्तर प्रदेश में जाकर कभी मुलायम सिंह के खिलाफ इन्होने कुछ भी न कहा और न ही मायावती के खिलाफ कभी कोई टिप्प्णी किये है, बायदवे मुलायम सिंह व सपा की सरकार के काम काज कितना संतोष जनक है इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पहले छै महीने में उनके प्रदेश में तकरीबन प्रत्येक दिन दंगा होते रहे और जनाब दंगे की गर्मी में सफई के महोत्सव का रंगा- रंग आनंद लेते रहे।

कभी -कभी तो वाकई ये सच लगता है कि केजरीवाल को राजनीती में आना किसी साज़िस की तहत है जो बाहर के मुल्को के द्वारा प्रायोजित है जिसका एक मात्र लक्ष्य है कि देश के राजनीती के आक़ाओं को रक्षात्मक बनाना ताकि वे अपने ऊपर ही ध्यान केंद्रित कर सके जिससे देश का विकास की रफ़्तार को रोका जाय अन्यथा केजरीवाल का एक विजन तो जगजाहिर होता है शुरू -शुरू में भ्रष्टाचारमुक्त भारत चाहते थे पर अब अरजाकयुक्त भारत चाहते है जबकि इनके वॉलंटीयर के तादाद को लेकर दावा कुछ भी कर ले पर सिमित मात्र है जिनको ये देश के सभी शहर में बारी – बारी से प्रदर्शन के लिए इस्तेमाल करते रहते है। जो भी हो केजरीवाल का पार्टी एक कॉर्पोरेट सेक्टर के तरह काम करते दिखे जा रहे है जिसमें एक चेयरमैन है जो कि खुद केजरीवाल साहब है बाकि और लोग मैनेजमेंट की विभिन्न श्रेणी में कार्यरत है। बरहाल केजरीवाल अपने चुनावी लोलीपोप को बेचने में लगे है अब देखना कि आनेवाले आम चुनाव में किस हद तक अपने प्रोडक्ट को बेच पाते है ……!!

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