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“आप” भी मतलबी निकले ……

आत्ममंथन
आत्ममंथन
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अब तो बस दिल्लीवासी को ही तय करना हैं कि आआपा के प्रति जो समर्पण था अभी भी आप के खातिर दिल में कायम है अथवा हाल में जो मौकापरस्ती आआपा के तरफ से देखीं गयी है, हो सकता हैं इस कारण से दिल्ली वासी का मियाज़ बदल गया हो। लोग जो भी कहे लेकिन आआपा में शुरू से ही अवसरवादिता झलक रही थी, यही कारण था कि आआपा अपनी साख की परवाह किये बिना न जाने अनगिनत बार अपने ही उद्घोषणा से पलटी मारते दिखे गए, नतीज़न देश के जनता जिनको देश की राजनीती को शुद्धिकरण का जिम्मेदारी सोपी थी वे ही झूठे और पलटीमार निकले। इसीका परिणाम ये हैं उनके सबसे सर्वमान्य साथी अतीत के अन्ना को भी सत्ता के हवशी उनको कहने में थोड़ा भी संकोच नहीं हुआ। अरविन्द केजरीवाल शायद पहला और एक मात्र ऐसा मुख्यमंत्री होंगे जिन्होने आम चुनाव के मद्दे नज़र दिल्ली की मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिए। परन्तु यही एक मात्र कारण नहीं था ब्लिक इन कारण के साथ और अनेको कारण थे जिनका आभाष केजरीवाल को हो चला था, जैसे कि उनके सरकार को अल्पमत में आना, किये गए वायदे पूरा नहीं कर पाना, उनके नेता और मंत्री के अंदर राज्यभोग की ललक विड्मान होना, मंत्री का अपने मनमानी पर अमादा होना, बगेरह।

लेकिन चुक गए केजरीवाल कि उन्होंने जिस मुद्दा को लेकर इस्तीफा दिया न ही आम आदमी ही इससे इत्तेफ़ाक़ रखते है और न ही देश के संविधान ज्ञाता ही, क्यूंकि देश के संविधान नेता से और उनके नापाक सोंच से सर्वोपरि हैं अर्थात किसी को भी ये अधिकार हरगिज़ नहीं दिया जा सकता हैं कि संविधान से ऊपर जाकर अपनी सोंच को कानून के रूप में अख्तियार करवाये जबकि सोंच जनहित से ज्यादा उनके हित को पूरा करता हैं। चाहे कांग्रेस हो या भजपा, किसी भी पार्टी के सभी लोग को न हीं भ्रष्ट कहा जा सकता और न ही ईमानदार। लेकिन जो दिल्ली सरकार व केंद्र सरकार का भ्रष्टाचार के प्रति रवैया रही और जिस कदर एक -एक करके तक़रीबन सभी मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त पाये गए इससे आम लोगों में सरकार के प्रति आक्रोश होना स्वाभाविक था, और यही कारण आज पुरे देश में कांग्रेस के खिलाफ हवा चली हैं। परिणामस्वरूप दिल्ली के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ चली हवा को अपने पक्ष में मोड़ने में आआपा कामयाब हो गई और इसी कामयाबी से गदगद हुए आआपा खुदको रोक नहीं पा रही है इसीलिए मौका के ताक में बेठे, जैसे ही लगा कि आम चुनाव का शंख फुकने का यही उचित समय हैं, झट से दिल्ली सरकार से इस्तीफा देकर आम चुनाव का शंख फुक दी।

दरशल, जो सच है उससे भलीभाँति आआपा भी वाकिफ़ हैं कि इस चुनाव में लाख कोशिश के वाबजूद भी आआपा कोई चमत्कार नहीं करनेवाली हैं क्यूंकि ना हीं केंद्र में सरकार बनाने जा रही और न ही सरकार बनाने में अहम् कीड़दार ही निभा सकती हैं फिर भी इस तरह का उतावलापन क्यूँ ?, कारण हैं कि अगर इस चुनाव में देश की राजनीती में अपनी उपस्थिति दर्ज़ नहीं करा पायी तो हो सकता है कि इसके लिए पाँच साल तक इंतज़ार करनी पड़े जिसके लिए आआपा कतई तैयार नहीं है। लेकिन इस जल्दबाज़ी में शायद ये भूल गए कि जो पार्टी दिल्ली जैसी छोटी राज्य में उत्कृष्ट और अपेक्षाकृत सरकार देने में असक्षम रही ऐसी पार्टी को देश के जनता स्वीकारती हैं अथवा नहीं, ये आम चुनाव के बाद ही साबित हो पायेगा तब उस के आधार पर यह भी शायद लोक तय कर पायेंगे कि अरविन्द केजरीवाल का अचानक इस तरह से इस्तीफा बलिदान के लिए समप्रित था अथवा मौका परस्ती के लिए क्यूंकि देश के ज्यादातर जनता काफी समझदार हो चुके है, मुख्यतः शहर के मतदाता जिसके ऊपर आआपा के दारोमदार हैं और उन्ही के वोट हासिल करने के लिए सब कुछ कर रहे हैं। अगर इसी तरह के इस्तीफा को देश के लोग पचा नहीं पाये तो आआपा के मनसूबे धरे रह जायेंगे और नुकसान इतने बड़े भी हो सकते हैं जिसके भरपाई करने में अर्से लगना तय है।

हालाँकि कई बुद्धजीवियों का यह भी मानना है कि प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस को फायदे के लिए इस तरह का ताना-बाना बुना जा रहा है ताकि मोदी को दिल्ली के ताज़ से मेहरूम रखे और इस तरह के हथकंडे जो आआपा के द्वारा अपनाये जा रहे हैं यह किसी अप्रत्यक्ष समझोते के तरफ इशारा करते हैं। वास्तविक में देश के जनता मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार व चारों तरफ फ़ैल रही आरजकता से उब चुकी है और एक नई सरकार को दिल्ली में देखना चाहती हैं इसके लिए एक नए विकल्प को तलाश रही हैं जबकि छोटी- छोटी पार्टीयां जनता को असमंजस में रखने के लिए आतुर है और उन्ही पार्टी में से एक आआपा भी है जो बढ़- चढ़ कर अपनी भागीदारी दुरुस्त कर रही है। एक वाक्य मैं सदेव कहता आया हूँ फिरसे उसी वाक्य को दोहरना चाहूंगा कि आखिरकार देश के जनता जनार्दन को ही तय करना है कि अपने विकल्प के रूप में किसको चिन्हित करती हैं अन्तः सियाशी दल कुछ भी करले पर … !

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