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नेताजी आप तो सच्चे हैं

आत्ममंथन
आत्ममंथन
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नेताजी आप तो सच्चे हैं

क्या, हम अभी भी बच्चे हैं,

बच्चे को कामगार बनाकर

सपने का महल तैयार किया

अथक प्रयाश रही हमारी

जो आपको बुलंदी नसीब हुई

खुदको मख्खन -मलाई चट कर गए

हाथ हमारे लोली पॉप रख गए

आप ही बताये मेरी भूख क्या इतनी है

कि आप के ख्याली पुलाउ से भर जाये

न कहिये कुछ, पता हैं आप कितने अच्छे हैं

नेताजी आप तो सच्चे हैं

क्या, हम अभी भी बच्चे हैं,

मेरी हट है कि मेरा अधिकार मिले

पर आप ने झुनझुना का दुलार दिए

झुनझुना के सुरमय ध्वनि में

हमें सुलाकर क्या खूब किया आपने

पर काश, ये आप समझने की कोशिश करते

बच्चे जो कभी आपके लोलीपॉप पर बहल जाते थे

अब वे बालिग हो गए

दुनिया -दारी की समझ अब उनको हो चला

दिखावे का लार- दुलार से वे अब उब चला

कब आयेंगे बाहर इस भ्रम से

कि अभी तक हम कच्चे हैं

नेताजी आप तो सच्चे हैं

क्या, हम अभी भी बच्चे हैं,

क्या हमारी चुपी ही सन्नाटा है

जो हमें ही निगल रहा हैं

आदत हो गयी हैं जो कि

रात के अँधेरा में खुदको ढ़ूढंते हैं

जबकि दिन के उजाले में औरो के सुनते हैं

देखिये फिर से विहान ने दी है दस्तक

आखिर ये अँधेरा नहीं छटेंगी कबतक

प्रभात के पखर में खुदको परखें

अपनी मुट्ठी को बंद करके

अपना भाग्य विधाता हमे ही बनना है

कैसी होगी सोंच उनकी जो कि लुच्चे हैं

नेताजी आप तो सच्चे हैं

क्या, हम अभी भी बच्चे हैं,

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