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ममता, तेरी ममता किस काम का !!

आत्ममंथन
आत्ममंथन
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क्या राजनीती में लोग इतने नीचे लुढक सकते हैं शायद उस पायदान के बाद मानव और दानव के बीच में कोई फ़र्क़ शेष रह नहीं जाता हैं। पर इनदिनों राजनीती करनेवाले इनसे इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते क्यूंकि किसीकी लुटती अस्मत में भी उनको साज़िस की बू आती हैं, किसी के मौत में भी उन्हें विपक्षी के चाल नज़र आती हैं।

जी हँ, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री साहिबा यानि ममता बेनेर्जी को तो यही दीखता हैं उनके विरोधी उन्हें बदनाम करने के लिए उनके खिलाफ साज़िस कर रहे हैं। ममता जी, आप तो औरत हैं क्यूंकि औरत ही माँ भी होती हैं, सचमुच औरत ममता के प्रतिक होती हैं पर आपके इस बयां से जरुर औरत के रूप पर प्रश्न चिन्ह लग गया होगा क्यूंकि यह बात कोई और कहता तो शायद इतना दिल को नहीं छूटा पर आप ?

२४ परगना के मध्यमग्राम में एक और निर्भया के अस्मत को सर्मसार ही नहीं ब्लिक उनको जिस कदर आग के हवाले कर दिया गया, इनसे यही कहा जा सकता हैं कि हेवानो के होसला इतना बुलंद क्यूँ हैं?, कि इस तरह के कुकर्म करने से पहले और कुकर्म करने बाद भी डर का लेशमात्र नहीं उन सबके जहन में यदि होता तो अपराध को दुहराने का जुरअत नहीं करते और ना ही उस मासूम को आग में जला देते। पुलिस का जो रवैया देखा गया इससे बिना शक़ कहा जा सकता है कि प्रान्त की सरकार और उनकी पुलिस तंत्र भी इस घिनोने अपराध में बराबर के शरीक़ रहे हैं जिस प्रकार अपराधियो को मदद की गयी चुप्पी साध कर अन्यथा पीड़िता के शिकायत के ऊपर अतिशीघ्र करवाई करी होती तो शायद पीड़िता कि जान बचायी जा सकती थी। प्रशासन के नापाक कोशिश के चलते ही पीड़िता को अपनी जान की आहुति देनी पड़ी पर व्यवस्था जिसे लकवा मार गया है उस क्या फ़र्क़ पड़ता है ? अन्यथा १६ दिसंबर २०१२ के बाद पहली और आखिरी घटना तो यह नहीं हैं वस्तुतः १६ दिसंबर २०१२ के बाद लगभग देश में हज़ारो घटना घटे मसलन कुछ तो हाई प्रोफाइल घटना थे जो मीडिया द्वारा हाईलाइट करने के बाद उनके जाँच में चुस्ती तो दिखाई पड़ी, बाकि को रफा -दफा कर दिया गया या तो ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया।

न ही कोर्ट अभी तक इस घटना का संज्ञान लिया और न ही केंद्र सरकार के कोई नुमाइंदो इस घटना को संजीदीगी से लिया। राज्य के मुख्य मंत्री जबतक विपक्ष में बैठती थी तब के तेवर और आज के तेवर को देखकर यही कहा जा सकता हैं कि हाथी के दांत और लोगो का बर्ताव दिखाने के लिए और उपयोग काने के लिए अलग -अलग होते। काश यही घटना दिल्ली शहर में होती और ममता बेनेर्जी दिल्ली की मुख्यमंत्री होती तो शायद ओछी बात कहकर इतने आसानी से अपनी जिम्मेवारी से भाग नहीं पाती।

आखिरकार ममता के ममता किस काम के जब उनकी राज्य में एक तरफ लोगो का मेहनत की कमाई लुटी जाती हैं और दूसरी तरफ मासूम- लड़कियो की अस्मत लुटी जाती हैं।

दिल से न जाने कितने तरप एक साथ निकले,
हर तरप में न जाने कितने दर्द छुपे थे,
दर्द बेजुबाँ फिर भी एक सवाल लिए हुए
ममता, तेरी ममता किस काम का !!

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