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हमें मुद्दा तो दो जिसके आधार पर हम आपको चुने!!

आत्ममंथन
आत्ममंथन
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पांच राज्य में चुनाव के साथ दिल्ली की सिंहासन का जंग का आगाज़ हो गया हैं, अभी अंजाम का पता नहीं परन्तु कोई अचरज नहीं होगा कि चाहे कोई भी जीते -हारे पर चुनाव मुद्दा विहीन होगा इसीलिए तो अभी तक ना कोई विज़न और ना ही कोई ऐसा मुद्दा राजनीत पार्टियाँ जनता के समक्ष रख सके हैं जिसका सीधे जनता से सरोकार हो। फिर भी इसकी सरगर्मी गॉँव के खेत -खलियान से हो कर शहर के कॉर्पोरेट दफ़तर तक जा पहुँची हैं , जिसे बड़ी आसानी से भाँपा जा सकता हैं। राजनीतीक दल अपने अपने अंक गणित और भूगोल सुधारने में अभी से लग गए हैं, जाति और महज़ब की समीकरण बैठाया जा रहा हैं, कई गठजोड़ तोड़ रहे हैं तो कई गठजोड़ने के तांकझांक में लगे हैं। ये राजनीती का ऐसा महाकुम्भ हैं जिसमे हर कोई गोटा लगाने के लिए उत्शुक्ता से अग्रसर हैं। चाहे सोशल मीडिया हो या इलेकट्रोनिक मीडिया जोर-शोर इसके लिए इस्तेमाल किये जा रहे हैं। विपक्ष जितना इस आगामी लोकसभा चुनाव के लिए उतावले हैं उतना ही मौजूदा सरकार घबराये हुए हैं कि कुर्सी ना खिसक जाय । एक आम आदमी जो इस चुनाव के मुख्य कीड़दार में होंगे वे खामोश हैं, जो कि मतदान के दिन एकांतवास से निकलकर मतदान करने हेतु बुथ तक जाएंगे और वोट गिराकर फिर अगले पांच शाल तक एकांतवास हो लेंगे, यदि वोट गिराना मौलिक अधिकार ना होता तो शायद इसको को भी नज़र-अंदाज कर देते। यदि आत्मंथन करेंगे तो इसका कई वजह हैं जैसे कि पिछली सरकार की नाकामयाबी , अयोग्य उम्मीदवारी, अपराध और धन का दखलअंदाजी पर वास्तविक में मुद्दा ना होना मुख्य वज़ह माना जा सकता हैं। जंहा तक निर्वाचन आयोग कि प्रयाश को देखेंगे तो कम नहीं हैं की आपरधिक छवि वाले को दूर रखा जाय पर यदि आंकड़े पर गौड़ फरमायेंगे तो इसकी जो तदाद वे तस से मस नहीं हो पा रहे क्यूंकि हमारी सरकार हरगिज ये नहीं चाहती हैं कि आपरधिक छवि वाले उम्मीदवार पर नकेल कशा जाय। जँहा तक राजनीती दल कि रुख कि बात करेंगे तो बेशक़ दावे जो भी करले लेकिन किसी को भी इनसे परहेज नहीं हैं इसलिए तो २५-५० फिसदी ऐसे उम्मीदवार को उतारते हैं चुनावी जंग में, क्यूंकि उनके भी जहन में ये घर बना लिया हैं कि बिना वांहूबल और धनबल के इस जंग पर फ़तेह नही किया जा सकता। बड़ी बड़ी रैलिया के बहाने एक तरफ अपनी ताकत विरोधी दल को दिखाते हैं, दूसरी तरफ जनता के नब्ज़ को टटोलते हैं। सभी पार्टी अनुशासन के मापदंड को परवाह किये बिना उस लक्ष्मण रेखा को लाँघ रहे हैं जिसे शभ्य समाज किसी भी परस्थिति में स्वीकार नहीं सकते ।

लोकसभा चुनाव, जो लोकतंत्र का महापर्व हैं, इनकी तैयारीयाँ चारो तरफ देखने को मिल रहे हैं पर मुद्दा क्या होगा इस चुनाव का, वे सुनने को नहीं मिल रहे हैं? उसी भांति जैसे कि हमने दीवाली कि पूरी तैयारी कर ली पटाखे खरीद कर रख लिया, नाना प्रकार के पकवान बनाने कि सामग्री इकट्ठा कर ली पर दियाँ और बाटी लाना ही भूल गया हो, जो कि दीवाली त्यौहार के लिए सर्वोपरि हैं उसी प्रकार चुनाव मुद्दा के आभाव में अनोपचारिक हैं । राजनीती दल का ही नहीं ब्लिक जनता को भी चुनाव का मुद्दा ढूढ़ना चाहिए और पक्ष और विपक्ष के पुरे पांच शाल का कार्य का ब्यौरा को ना कि इकट्ठा करना चाहिए ब्लिक उसकी बारकी से परखना भी चाहिए क्यूंकि उनकी एक वोट से अगले पांच के लिए ना कि हमारा, पुरे देश का दिशा और दशा निर्भर हैं। देश का विकाश में एक शशक्त सरकार कि अहम् भमिका होती हैं इसलिए जब तक हम देश को स्थिर और शशक्त सरकार नहीं देंगे तब तक ना खुदको मजबूत और ना ही अपने देश को मजबूत होते देखेंगे। सबसे बड़ी बात यह हैं कि राजनीती दल के प्रचार- प्रशार पर ध्यान देने के वजाय उनके मुद्दा और कार्य शैली पर ध्यान देने कि जरूरत हैं। वेसे भी देश में मुद्दा का आभाव नहीं हैं जैसे कि महंगाई, भ्रष्टाचार और विकाश कि धीमी रप्तार जैसे कई , पर नेताओ की चिकनी चुपरी झांसे में आने से खुदको रोके और मुद्दा को चिंहित कर, परख कर उन जन- प्रतिनिधि पर अपनी मुहर लगाये जो हमारी और देश की उम्मीद पर खड़े उतरे।

वैसे भी इस बार का चुनाव खाश होने जा रहे हैं क्यूंकि इस चुनाव के बाद, एक नहीं कई अनसुलझे सवाल का जवाब इस देश को मिलेंगे जँहा एक तरफ धर्मनिरक्षपेता का ढिंढोरा पीटने वालें का गठजोड़ कि गुंजाइस हैं वही दूसरी तरफ विकाश की दोहाई देनेवालों की पर हम जनमानस को ही आखिर में तय करना हैं कि कौन वह होगा जो देश की सारी समस्या को निरस्त करके देश को विश्व के प्रथम पंक्ति में जगह दिलवाएगा?

दरशल मुद्दा अहम् कड़ी हैं जो ना कि राष्ट हित के लिए अनिवार्य ब्लिक माला की उस धागे का काम करेगा जो पुरे देश को एक शुत्र में फिरो कर रखेगा। यदि एक मुद्दा को पुरे आवाम अपनाता हैं तो क्षेत्रीय दल की भागीदारी को सिमित ही नहीं रखेगा ब्लिक उसे विवश भी करेगा की वे राष्टीय दल के साथ आये, जिससे देश को मजबूत सरकार मिलगी । मुद्दा सही मायने में पार्टी और राष्ट दोनों के लिए हित कर हैं जो कि एक तरफ दल और नेता को अनुशासित करेंगे जबकि दूसरी तरफ जनता को भी बाध्य करेंगे कि वे जाति और महज़ब को पीछे छोड़ कर एक ऐसी सरकार की कल्पना करें जो राष्ट के प्रति समप्रित हो। इसलिए आखिरी में राजनीती दल और उनके नुमांयांदो से अनूरोध करूँगा कि आवाम को एक मुद्दा चाहिए क्यूंकि तु -तु , मैं- मैं की राजनीती से यँहा के जनता उब चुके हैं और अब इसका अंत चाहते हैं। अन्तः ताना बाना बुनने के वजाय, हमें मुद्दा दो जिसके आधार पर हम आपको चुने।

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