आत्ममंथन
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इतनी मर्दन हुई मेरे जख्म को की अब ये भी शिथिल गयी
आखियों में भी अब नमी नहीं जो अश्क बनके अपनी दर्द को बयां करे!
करके लाख कोशिश, इस भ्रष्ट तंत्र में खुद को ना बचा पाया,
अब सांसे पर कर लगा दिए, गिन गिन कर आखिर कब तक जीया करे !!!
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