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चाहिए एक और गाँधी

आत्ममंथन
आत्ममंथन
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इस विपदा की घड़ी में,
चाहिए एक और गाँधी
पूरी हो हमारी आज़ादी
लाये ऐसा आंधी
हिमालय फट रहा हैं,
गंगा करे उफान
मिटटी अपनी वज़ूद ढूंढे,
मुर्छित हुए किसान
चाहिए एक और गाँधी…।
मुन्नी भूखी सो रही हैं ,
दम तोड़ रहा हैं रुपैया
भाबी की माँग सुंनी पड़ी,
सहादत दे रहे हैं भैया
चाहिए एक और गाँधी…।
महंगाई की ओले पड़े हैं,
निगल रहा हैं भर्ष्टाचार,
बेशर्मी ने हद कर दी,
खो गए हैं शिष्टाचार
चाहिए एक और गाँधी …।
हर सूबे के हैं अपने मनसूबे,
कैसी होगी आपसदारी
माफियाओ का राज हुआ हैं,
किनको भाए ईमानदारी
चाहिए एक और गाँधी …।
चोरो के हाथ में चाभी हैं,
बेईमान करे हैं कोतवाली
स्विस बैंक जमा हैं पूजी,
अपनी बैंक तो हैं खाली
चाहिए एक और गाँधी …।
देख इन भोले भाले को,
जो बन पड़े हैं महज़बी
भेद भाव में उलझा कर,
बना रहे हैं अजनबी
चाहिए एक और गाँधी …।

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