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* जरा सोचिये नेताजी*:-

आत्ममंथन
आत्ममंथन
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आज की राजनीति देखकर काफी विस्मय हूँ कि इतनी गन्दी क्यूँ हैं ? खैर अभी तक इसमें सक्रिय नहीं हूँ लेकिन भविष्य में शायद जाना भी पड़ा तो क्या इस तरह के मोहाल में अपने को अछूत रख पाएंगे ये कहना मुश्किल ही नहीं नामुकिन हैं? जिस तरह तू तू, मैं मैं सब कर रहे हैं शायद शिष्ट लोगो के लिए वंहा जगह नहीं बनती। छे महीने में आम आदमी से खाश आदमी हो जाते हैं, और सत्ता में आने के लिए कुछ भी करने के लिए आतुर हो जाते हैं, और इन क्रिया कांड में एक भले मानुष का पूरा इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि आज के दिनों में उनसे इमानदार और कर्मनिस्ठ शायद पुरे ब्रह्माण्ड में ढूढनेपर भी नहीं मिलेगा। उन भले मानुष भी इसी गन्दी राजनीति का शिकार हुए पड़े हैं, जो कभी चले थे देश को भर्ष्टाचार मुक्त करने को, पर भर्ष्टाचारियो ने ही उनको अपना शिकार बना लिया लेकिन ये बीते दिनों कि बात इनदिनों वे अज्ञात- वास पर हैं और खोये हुए हिम्मत को जूटा रहे हैं ताकि आनेवाले दिनों में फिर से अपनी क्रांति को हवा दे सके। इन दिनों पांच राज्य में विधानसभा का चुनाव होनेवाले हैं या हो रहे हैं नेताओ कि रैली जोर शोर पर हैं। रैलीयो से तो कोई आपत्ति नहीं हैं पर जिस कदर नेताओ अपना आपा खो रहे हैं यह काफी चिंता का विषय हैं जो समाज में गलत मैसेज दे रही हैं। इन अशभ्य वातावरण से समाज में काफी असमंजसता और लोगो के हृदय खिन्न हैं कि आखिर ये हो क्या रहा हैं? पर नेतागण बेफिक्र होकर अपनी गलती सुधारने के वजाय बार बार दोहरा रहे हैं और व्यंग, कटाक्ष और टिप्प्णी सामूहिक न होकर व्यक्तिगत होने लगे हैं। जिस तरह का मोहाल हमारे नेतागण बना रहे हैं यह कहना कतई अनुचित नहीं होगा कि अगर देश की जनता जिस रोज अपना आपा खो गए उस रोज आप नेता को क्या होगा ? जरा सोचिये नेताजी ………………………!!

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